Guru Gobind Singh Ji सिख धर्म के दसवें गुरु थे। वे न केवल एक महान आध्यात्मिक नेता थे बल्कि एक साहसी योद्धा भी थे। उन्होंने Khalsa Panth की स्थापना की और धर्म की रक्षा के लिए अपने पूरे परिवार की कुर्बानी दी। उनका जीवन साहस, बलिदान और धार्मिक आदर्शों का प्रतीक है।
Guru Gobind Singh Ji birth 22 दिसंबर 1666 को पटना साहिब (बिहार) में हुआ। उनके पिता Sri Guru Tegh Bahadaur Ji ने कश्मीरी पंडितों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। उनकी माता का नाम माता गुजरी जी था। बचपन में उनका नाम गोबिंद राय रखा गया। उन्होंने गुरमुखी, फारसी, संस्कृत और ब्रज भाषा की शिक्षा ली और धार्मिक एवं युद्ध कौशल सीखे।
In 2026, Guru Gobind Singh Ji’s birthday will be observed on January 20th, a Tuesday. It will considered as 359th prakash purab of Guru Gobind Singh Ji
1699 में बैसाखी के दिन, Guru Gobind Singh Ji ने खालसा पंथ की स्थापना की। उन्होंने “पंच प्यारों” की रचना की और स्वयं को खालसा रूप में परिवर्तित किया।
उन्होंने कहा:
“जिन्हें खालसे से प्रेम है, वे मुझसे प्रेम करते हैं।”
यह न केवल धार्मिक बल्कि आध्यात्मिक और सामाजिक क्रांति थी जिसने सिख धर्म को नई दिशा दी।
"Waah Waah Gobind Singh, Aape Guru Chela" translates to: "Wonderful, wonderful is Gobind Singh, who is both the Guru and the disciple."
गुरु जी ने सदैव न्याय, सत्य और सेवा का उपदेश दिया।
उनका प्रसिद्ध कथन है:
“चू कार अज़ हमे हीलते दर गुज़श्त, हलाल अस्त बुरदन ब-शमशीर दस्त।”
(जब सभी प्रयास असफल हो जाएं, तो तलवार उठाना उचित है।)
उन्होंने जीवन भर अत्याचार के खिलाफ आवाज़ उठाई और सिखों को निडर बनना सिखाया।
गुरु गोबिंद सिंह जी ने कई युद्ध लड़े – भंगानी, आनंदपुर, और चमकौर प्रमुख हैं।
उनके चारों पुत्रों ने धर्म की रक्षा करते हुए वीरगति प्राप्त की।
यह बलिदान सिख इतिहास की अमर गाथा है।
1708 में नांदेड़ (हज़ूर साहिब) में गुरु जी ने आख़िरी आदेश दिया:
“सब सिखन को हुकम है, गुरु मानियो ग्रंथ।”
उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब जी को सिखों का अंतिम और शाश्वत गुरु घोषित किया।
गुरु जी ने कई महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की जैसे:
बचित्तर नाटक, ज़फ़रनामा, jaap sahib और चरित्रोपाख्यान।
उनकी वाणी आज भी हमें धर्म, साहस और आत्मबल की प्रेरणा देती है।
कई लोग “guru gobind singh ji real image” ढूंढते हैं, लेकिन इतिहासकारों के अनुसार उनकी कोई असली तस्वीर उपलब्ध नहीं है।
आज जो चित्र हैं, वे कलाकारों की कल्पना और ऐतिहासिक विवरणों पर आधारित हैं।
गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्मदिन 2025 में Monday, January 6, मनाया गया।
यह दिन सिख समुदाय के लिए पवित्र और गर्व का दिन होता है।
इस अवसर पर नगर कीर्तन, सेवा, और कीर्तन दरबार आयोजित किए जाते हैं।
There are so many name of Guru Gobind Singh ji some of them are mentioned below:
Name / Title | Script (if applicable) | Meaning / Context |
---|---|---|
Gobind Rai | ਗੋਬਿੰਦ ਰਾਇ | Birth name, given at Patna Sahib |
Gobind Das | ਗੋਬਿੰਦ ਦਾਸ | Used in official writings of his early life |
Guru Gobind Singh Ji | ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ | Name after becoming the 10th Sikh Guru in 1675 |
Dasmesh Pita | ਦਸਮੇਸ਼ ਪਿਤਾ | Father of the Khalsa; “Dasmesh” = Tenth; “Pita” = Father |
Sarbans Dani | ਸਰਬੰਸ ਦਾਨੀ | Giver of all; one who sacrificed everything |
Mard Agamra | ਮਰਦ ਅਗੰਮਰਾ | The man beyond comparison |
Kalgidhar Patshah | ਕਲਗੀਧਰ ਪਾਤਸ਼ਾਹ | The royal with a kalgi (plume); symbol of sovereignty |
Bani Da Bohit | ਬਾਣੀ ਦਾ ਬੋਹਿਥ | Boat of Divine Bani (Scripture) |
Shasterdhari Guru | ਸ਼ਸਤਰਧਾਰੀ ਗੁਰੂ | The armed spiritual Guru |
Zafarnama-wala Guru | ਜ਼ਫਰਨਾਮਾ ਵਾਲਾ ਗੁਰੂ | The Guru who wrote Zafarnama to Aurangzeb |
Charitropakhyan Karta | ਚਰਿਤ੍ਰੋਪਖਿਆਨ ਕਰਤਾ | Composer of Charitropakhyan in Dasam Granth |
Akal Purakh Da Sevak | ਅਕਾਲ ਪੁਰਖ ਦਾ ਸੇਵਕ | Servant of the Timeless Lord (Waheguru) |
Nidar Yodha | ਨਿਦਰ ਯੋਧਾ | Fearless warrior |
Guru Sahib | ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ | Reverential honorific used by Sikhs |
यह लेख guru gobind singh ji history in punjabi को हिंदी भाषा में सरल रूप से समझाने का प्रयास है।
गुरु जी की शिक्षाएं, बलिदान और नेतृत्व आज भी दुनिया भर के सिखों को राह दिखाते हैं।
उनकी जीवनगाथा हमें सिखाती है कि धर्म और सच्चाई के लिए संघर्ष कभी व्यर्थ नहीं जाता।
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